आचार्य चाणक्य |
ज्ञान और शिक्षा को भारत देश ने हजारो वर्षों से बहुत महत्व दिया है, इस पर आचार्य चाणक्य के कुछ अनमोल विचार (Chanakya Quotes in Sanskrit and Hindi) यहाँ प्रस्तुत हैं।
यस्मिन देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः।जिस देश में सम्मान, आजीविका का साधन, मित्र रिश्तेदार और विद्या अर्जित करने के साधन न हों ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए।
न च विद्यागमः कश्चित् तं देशं परिवर्ज्येत्।।
विषादप्यमृतं ग्राह्य्ममेध्यादपि काञ्चनम्।विष में यदि अमृत हो, गन्दगी में यदि सोना हो, नीच मनुष्य के पास कोई विद्या हो और दुष्ट कुल में अच्छी स्त्री हो तो उन्हें ग्रहण कर लेना चाहिए।
निचादप्युत्तमा विद्या स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि।।
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः।अपने बच्चों को न पढ़ाने वाले माता-पिता उनके शत्रु के सामान हैं। क्योंकि अनपढ़ मनुष्य किसी सभा में उसी प्रकार अशोभनीय होते हैं जैसे हंसों के झुंड में बगुला।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा।।
श्लोकेन वा तदधेन पादेनैकाक्षरेन वा।व्यक्ति को एक श्लोक, एक श्लोक ना हो सके तो आधे श्लोक का ही या जितना हो सके उतना ही अध्यययन करना चाहिए। व्यक्ति को ज्ञान अर्जित करते हुए अपने दिन को सार्थक बनाना चाहिए।
अबंध्यं दिवसं कुर्याद् दानाध्ययन कर्मभिः।।
कामधेनुगुणा विद्या ह्यकाले फलदायिनी।विद्या में कामधेनु के गुण होते हैं जो असमय ही फल देते हैं। विदेश में विद्या माँ के सामान है इसलिए इसे गुप्त धन कहा गया है।
प्रवासे मातृसदृशी विद्यागुप्तं धनं स्मृतम।।
जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति।जन्म देने वाला, आध्यात्मिकता से परिचय कराने वाला, विद्या देने वाला, अन्न देने वाला तथा भय से मुक्ति देने वाला ये पांच व्यक्ति पितर माने गए हैं।
अन्नदाता भयत्राता पञ्चैते पितरः स्मृता।।
वित्तेन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते।धर्म की रक्षा धन से, विद्या की रक्षा योग से, राजा की रक्षा मृदुता से और घर की रक्षा अच्छी स्त्रियों से होती है।
मृदुना रक्ष्यते भापः सत्स्त्रिया रक्ष्यते गृहम।।
विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च।विदेश में विद्या, घर में पत्नी, रोग में दवा और मरे हुए का धर्म ही उसके मित्र हैं।
व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च।।
धन-धान्यप्रयोगेषु विद्यासंग्रहणेषु च।पैसे के लेंन-देन में, विद्या ग्रहण करने में, भोजन करने में और व्यवहार करने में जो शर्म नहीं करता वह सुखी रहता है।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।।
संतोषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने।स्त्री, भोजन और धन इन तीनो का संतोष करना चाहिए किन्तु विद्या अध्ययन, तप और दान का संतोष नहीं करना चाहिए।
त्रिषु चैव न कर्तव्योऽध्ययने तपदनायोः।।
शुनः पुच्छमिव व्यर्थं जीवितं विद्या विना।विद्या के बिना मनुष्य का जीवन कुत्ते की उस पूँछ के सामान है जिससे ना तो वह अपने मल द्वार को ही ढक सकता है और न ही खुद को काटने वाले कीड़ों को ही भगा सकता है।
न गृह्यगोपने शक्तं न च दंशनिवारणे।।
क्रोधो वैवस्वतो रजा तृष्णा वैतरणी नदी।क्रोध यमराज, तृष्णा वैतरणी, विद्या कामधेनु और संतोष नन्दन वन के सामान है।
विद्या कामदुधा धेनुः संतोषो नन्दनं वनम्।।
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